कंप्यूटर प्रोग्रामिंग: प्रोग्रामिंग कर तय करें अपना कद
कम्प्यूटर के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग अर्थात् कम्प्यूटर की भाषा का ज्ञान होना अत्यावश्यक है। c++, Java script, विजुअल बेसिक (वीबी), डॉट वेट, एचटीएमएल, डीएचटीएमएल, सीआईसी, ओरेकल, लाइनेक्स, यूनिक्स, असेम्बली इत्यादि ऐसी अनेक भाषाएं हैं, जो कम्प्यूटर में प्रोग्राम बनाते हुए प्रयोग में लाई जाती हैं। चूंकि कम्प्यूटर एक मशीन है, अत: इससे बातचीत व विचार-विमर्श का माध्यम भी मशीनी ही है। पुराने समय में अबेकस तथा कोड के माध्यम से कोडन किया जाता था, परंतु बदलते समय के साथ भाषाओं में भी परिवर्तन आ गया है। मूल रूप से कम्प्यूटर की भाषाओं को तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है-
1. प्रक्रियात्मक या वस्तु उन्मुख भाषाएं- ये भाषाएं मूल रूप से डिजाइनिंग करते वक्त काम आती हैं, जो OOAD द्वारा स्वचालित हैं।
2. कार्यात्मक भाषाएं- ये मॉडल चलित भाषाएं हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर, वास्तुकला इत्यादि में किया जाता है। ये MDA चालित हैं।
3. तर्क भाषाएं- ये विशिष्ट प्रकार के प्रोजेक्ट बनाते वक्त उपयोग में लाई जाती हैं, जहां तार्किक क्षमता तथा विश्लेषण की खास आवश्यकता होती है। ये UML चालित हैं। इनके अलावा कम्प्यूटर की भाषाओं को विभिन्न प्रकार से मापा जाता है, जैसे कोबोल, मेनफ्रेम, फोरट्रोन, स्किप्ट भाषा बेब सी में हुए अनुप्रयोग इत्यादि हैं।
कम्प्यूटर की किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसके बुनियादी निर्देश से अवगत होना अति आवश्यक है। सबसे पहले आपको कम्प्यूटर के बेसिक एप्लीकेशन का भरपूर ज्ञान होना आवश्यक है, जैसे एमएस ऑफिस, इंटरनेट, ई-मेल, कम्प्यूटर से जुड़े सिद्धांत इत्यादि। इसके बाद इनपुट-आउटपुट यूनिट, डिवाइस, उनका प्रयोग करना प्रदर्शन डेटा का ज्ञान, अंकगणतीय ज्ञान व प्रदर्शन, सशर्त निष्पादन, पुनरावृत्ति इत्यादि से अवगत होना भी आवश्यक है। कम्प्यूटर की ये भाषाएं प्रोग्राम बनाते वक्त उनके कोड, संकलन, दस्तावेजीकरण, एकीकरण, रखरखाव, आवश्यकताओं के विश्लेषण, सॉफ्टवेयर, वास्तुकला, सॉफ्टवेयर परीक्षण, विनिर्देश, डिबगिंग इत्यादि में काम आती हैं। प्रोग्रामिंग में इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न भाषाओं की जानकारी वैसे तो इंजीनियरिंग करने वाले हर छात्र को प्रदान की जाती है, परंतु यदि छात्र चाहे तो इसमें अलग से डिप्लोमा कोर्स करके विशिष्टता प्राप्त कर सकता है।
याद रहे कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के बिना कम्प्यूटर शिक्षा अधूरी है। यह रेगुलर व पत्रचार दोनों माध्यमों से की जा सकती है। इनके अलावा यदि छात्र कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में डिप्लोमा करना चाहते हैं तो उन्हें विभिन्न भाषाओं का चयन करना होगा। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कोर्स 6 महीने की अवधि से लेकर 2 साल तक किये जा सकते हैं। छात्र चाहें तो डिक्स अथवा डोएक नामक सरकारी संस्थानों से O.A.B. लेवल परीक्षा पास करके भी सर्टिफाइड कम्प्यूटर इंजीनियर बन सकते हैं। इन सभी की मूलभूत योग्यता 10+2 तथा ग्रेजुएशन है। B. लेवल की परीक्षा एमसीए के समकक्ष मानी जाती है और सरकारी नौकरी में भी प्राथमिकता दी जाती है। ये सभी कोर्स फुल-टाइम तथा पार्टटाइम दोनों ही समयावधि के अनुसार किए जा सकते हैं। इस प्रकार कम्प्यूटर के आविष्कार ने जहां इंफोर्मेशन टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, वहीं इसके उपयोगकर्ताओं के सामने देश-विदेश में कार्य करने हेतु रोजगार के अनेक स्वर्णिम अवसर खोल दिए हैं।
यहां पर कुछ कंप्यूटर कोर्स व उनकी अवधि की टेबल दी जा रही है, जिनको करके छात्र कंप्यूटर फील्ड में अपना करियर बना सकते हैं।
आज ऐसा कोई भी क्षेत्र बाकी नहीं रह गया है, जहां कंप्यूटर शिक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रगतिशील देश होने के नाते भारत में इसकी विशेष उपयोगिता है। अत: कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में करियर बनाने वाले दो प्रकार के अध्ययनों द्वारा इस क्षेत्र में आ सकते हैं- पहला कम्प्यूटर में तकनीकी डिग्री प्राप्त करके, दूसरा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में डिप्लोमा करके।
दोनों ही माध्यमों द्वारा छात्रों को कम्प्यूटर पर प्रोग्रामिंग बनाना तथा उसे प्रयोग में लाना सिखाया जाता है, ताकि कम्पनी बहुत ही कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम कर पाए। इनमें पंजीकरण, फाइलें बनाना व संभालना, विश्लेषण करना, प्रस्तुतिकरण इत्यादि प्रमुख हैं।
कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के शुरुआती दौर में छात्रों को एसेम्बली, सी, सी++,जावा स्क्रिप्ट, ऑरेकल डॉस इत्यादि भाषाओं की जानकारी दी जाती है। किसी भी प्रोग्राम को बनाने में इन भाषाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके बाद छात्रों को विजुअल बेसिक (वीबी), एसक्यूएल, डॉटवेट, डाटा स्ट्रक्चर, डाटा बेस मैनेजमेंट इत्यादि की जानकारी दी जाती है, ताकि छात्र उनका उपयोग करना सीख सकें। ईआरपी कुछ इसी प्रकार के एडवांस सॉफ्टवेयर हैं, जो स्पेशलाइजेशन द्वारा पेपर-वर्क काफी हद तक कम कर देते हैं। भारत में इस प्रकार के सॉफ्टवेयर बनाने में सैप कम्पनी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
इसके अलावा छात्रों को फ्रंट-एंड तथा बैंक एंड यानी स्टोरेज के तरीकों से भी अवगत कराया जाता है। फ्रंड-एंड प्रोग्राम मॉनिटर स्क्रीन पर विंडोज की तरह चलाए जाते हैं, जबकि बैक-एंड डोस केवल की-बोर्ड द्वारा ही संचालित किए जा सकते हैं। इनमें माउस का इस्तेमाल ना के बराबर होता है।
कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के अंतर्गत एडवांस टेक्नॉलोजी एम्बेडिड है। इसके द्वारा बड़े-बड़े प्रोग्राम कम्पनियों द्वारा बनाए जाते हैं। इसके अंतर्गत चिप प्रोग्रामिंग, जिसका इस्तेमाल विशेष तौर पर मोबाइल तथा अन्य तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल के दौरान दिखाया जाता है। इसका इस्तेमाल करने पर पेपर-वर्क ना के बराबर हो जाता है।
कुछ अन्य विशिष्ट प्रकार के सॉफ्टवेयर विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार भी बनाए जाते हैं, जैसे लाइब्रेरी के लिए लाइब्रेरी मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर, एकाउन्टिंग ट्रांजेक्शन के लिए मर्लिन इत्यादि। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी इसका जीवंत उदाहरण है। यहां इसकी हर शाखा में कोहा कम्पनी द्वारा संचालित कोहा सॉफ्टवेयर चलाया जाता है, जो धारक की हर सूचना को बहुत ही सहज ढंग से एक ही क्लिक द्वारा प्रस्तुत कर देता है। दिल्ली में यह पहली लाइब्रेरी है, जिसने यह सेवा सभी के लिए फ्री में उपलब्ध करवाई है। अब इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल चंडीगढ़ की चितकारा यूनिवर्सिटी तथा अन्य यूनिवर्सिटी भी कर रही हैं। यह सॉफ्टवेयर पर्ल भाषा पर आधारित है तथा लाइनेक्स इत्यादि भाषाओं का भी प्रयोग किया हुआ है।
इस प्रकार कम्प्यूटर के क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग का विशेष महत्त्व है। यह संचार का अभिन्न अंग है, जिसकी वजह से तकनीकी विज्ञान जीवन्त है। इसे अपनी सूझ-बूझ व क्षमता के अनुसार बहुत ही उपयोगी तथा विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। यह सब उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है।
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