ads By ravi

Thursday, June 24, 2010

संगीत का ताना-बाना

बुनें सुर-संगीत का ताना-बाना


एक समय ऐसा था, जब आवाज को उसके मूल रूप में ही रिकॉर्ड किया जाता था, परन्तु आज उसमें काफी हद त 25; बदलाव लाया जा सकता है। यह सब संभव हो पाया है ‘ऑडियो इंजीनियरिंग’ से। वैसे तो आवाज या म्युजिक का इतिहास काफी पुराना (1877 में थॉमस एडीसन ने संबंधित मेकेनिज्म की खोज की) है, लेकिन 20वीं शताब्दी तक आते-आते उसमें कई चीजें जुड़ गईं।

ऑडियो इंजीनियरिंग, ऑडियो साइंस की ही एक शाखा है। इसमें साउंड कैप्चर करने, रिकॉर्डिंग करने, कॉपी करने, एडिटिंग एवं मिक्सिंग करने, इलेक्ट्रॉनिक एवं मैकेनिकल उपकरणों द्वारा आवाज में उतार-चढ़ाव लाने संबंधी कार्य किए जाते हैं। यह पूरा कार्य पोस्ट प्रोडक्शन के अंतर्गत आता है। इसमें एक इलेक्ट्रॉनिक मिक्सिंग बोर्ड लगा होता है, जिससे रिकॉर्डिंग एवं एडिटिंग प्रक्रिया में साउंड इनपुट जैसे स्विच, डायल, लाइट्स एवं मीटर को नियंत्रित किया जाता है। यह कार्य ऑडियो इंजीनियर के जरिए संपन्न किया जाता है। कई बार इन्हें रिकॉर्डिंग इंजीनियर या साउंड इंजीनियर के नाम से भी जाना जाता है।

ऑडियो इंजीनियरिंग नई पीढ़ी के लिए एक उभरता हुआ करियर है, जो भारत एवं विदेश दोनों जगह फिल्म, वीडियो प्रोडक्शन, साउंड ब्रॉडकास्टिंग एवं एडवर्टाइजिंग में संभावनाएं तलाशता है। इस फील्ड के लिए खुद से कमिटमेंट एवं इंटरेस्ट होना आवश्यक है।

एजुकेशनल क्वालिफिकेशन

एक सफल ऑडियो इंजीनियर बनने के लिए ऑडियोग्राफी, साउंड रिकॉर्डिंग एवं ऑडियो इंजीनियरिंग में डिप्लोमा अथवा डिग्री कोर्स का होना आवश्यक है। वैसे तो इस फील्ड में किसी विशेष शैक्षिक योग्यता की दरकार नहीं होती, परन्तु ऑडियो इंजीनियरिंग में बैचलर अथवा पीजी डिग्री को वरीयता दी जाती है। जहां तक डिमांड की बात है तो ऑडियो इंजीनियर बनने के लिए फिजिक्स अथवा मैथ्स की आधारभूत जानकारी सहायक साबित होती है, जिसके दम पर वे रिकॉर्डिंग रूम में कई तरह की प्रतिध्वनि का आकलन कर सकते हैं। इसमें अधिक प्रैक्टिकल ज्ञान के आधार पर एक अच्छा ऑडियो इंजीनियर बना जा सकता है।

जिन छात्रों के पास इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एवं फाइन आर्ट की पृष्ठभूमि रही है, वे भी इस कोर्स के लिए उपयुक्त साबित हो सकते हैं। साथ ही उन्हें रिकॉर्डिंग उपकरणों जैसे मिक्सिंग कंसोल्ड एवं माइक्रोफोन की जानकारी भी होनी चाहिए। इस कार्य में उन्हें डिजिटल ऑडियो स्टेशन, स्पीकर, एंप्लीफायर सहì7;त कई अन्य म्यूजिक उपकरणों का प्रयोग करना पड़ता है।

कोर्स डिटेल्स

ऑडियो इंजीनियरिंग में साउंड रिकॉर्डिंग, एडिटिंग एवं मिक्सिंग के तकनीकी एवं रचनात्मक पहलुओं का बारीकी से अध्ययन किया जाता है। इसमें अधिकतर कोर्स की शुरुआत ही साउंड एवं रिकार्डिंग, पोस्ट प्रोडक्शन एवं ब्रॉडकास्टिंग की आधारभूत थ्योरी एवं फ्रिक्वेंसी से की जाती है। इसके तकनीकी पहलुओं के अंतर्गत ही साउंड मिक्सिंग में स्पेशल इफेक्ट्स डाला जाता है। कोर्स के बाद छात्र रिकॉर्डिंग टूल्स, माइक्रोफोन के प्रयोग के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ हो जाते हैं। इसके अलावा ऑडियो राइटिंग, इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक, साउंड रिकॉर्डिंग, म्यूजिक बिजनेस, मल्टीट्रैक प्रोडक्शन आदि कई ऐसे एरिया हैं, जिन्हें ऑडियो इंजीनियरिंग के तहत शामिल किया जाता है।

पर्सनल स्किल्स

एक ऑडियो इंजीनियर को टेक्निकल नॉलेज, इलेक्ट्रिकल एप्टीट्यूड, इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिकल सिस्टम एवं इक्विपमेंट की जानकारी होनी आवश्यक है। म्यूजिक प्रोडक्शन में टीम वर्क, अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स आपके काम को गति दे सकते हैं। एकाग्रता, धैर्य, अच्छी समझ, अच्छी लय की जरूरत, अच्छी रिद्म जैसे गुण ऑडियो इंजीनियर के लिए आवश्यक हैं। इसके साथ ही उसे रिकॉर्डिंग माध्यमों जैसे एनालॉग टेप, डिजिटल मल्टीट्रैक रिकॉर्डर एवं कम्प्यूटर नॉलेज की जानकारी भी सम्यक सहायता दिला सकती है।

नौकरी के अवसर

इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए ऑडियो इंजीनियरिंग में डिप्लोमा या डिग्री पहली सीढ़ी होती है। सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद मूवी, टेलीविजन, एडवर्टाइजिंग, मल्टीमीडिया संस्थान, ब्रॉडकास्टिंग, सीडी प्रोडक्शन आदि में जॉब पा सकते हैं। लेकिन एक ऑडियो इंजीनियर को जो फील्ड सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, वह म्यूजिक इंडस्ट्री है। इसमें प्रारंभ में रिकॉर्डिंग इंजीनियर के सहायक के रूप में करियर आरंभ कर सकते हैं। अपने अनुभव के आधार पर जल्द ही वे ऑडियो इंजीनियर के पद पर पहुंच सकते हैं। इसके अतिरिक्त माइक्रोफोन, रिकॉर्डर, मिक्सर एवं सॉफ्टवेयर, म्यूजिक एवं स्पीच में कई तरह के काम सामने आते हैं। साउंड, म्यूजिक, डायलॉग, स्पेशल इफेक्ट्स, म्यूजिक प्रोड्यूसर को भी स्पेशलाइजेशन के रूप में अपनाया जा सकता है। म्यूजिक प्रोड्यूसर बनने के बाद खुद का रिकॉर्डिंग स्टूडियो भी शुरू किया जा सकता है। स्टूडियो स्थापित करने के अलावा ऑडियो इंजीनियर फ्रीलांस के रूप में भी काम कर सकते हैं। ऑडियो इंजीनियरिंग का क्षेत्र काफी प्रतियोगी है। इसमें वही लोग सफल हो सकते हैं, जिनमें टैलेंट एवं विशेष गुण है।

करियर ऑप्शंस

इसमें कुछ प्रमुख करियर ऑप्शंस नीचे दिए जा रहे हैं-

स्टूडियो इंजीनियर

साउंड रिकॉर्ड करने, आवाज को बेहतरीन एवं नियंत्रित करने के लिए स्टूडियो में म्यूजिक एवं स्पीच को आकर्षक रूप देना स्टूडियो इंजीनियर का कार्य है। यह ऑडियो इंजीनियर का महत्त्वपूर्ण पद होता है।

ब्रॉडकास्ट इंजीनियर

इनका कार्य ब्रॉडकास्ट से जुड़े उपकरणों को सेट करने से लेकर उनकी देखभाल तक का होता है।

साउंड एडिटर

साउंड एडिटर डायलॉग एडिटर, म्यूजिक एडिटर एवं साउंड इफेक्ट एडिटर।
साउंड एडिटर इन तीनों का काम देखता है।

डायलॉग एडिटर

यह व्यक्ति मूवी, टीवी चैनल प्रोग्राम के एनालॉग को एडिट करता है।

म्यूजिक एडिटर

म्यूजिक एडिटर म्यूजिक ट्रैक को एडिट करता है।

साउंड इफेक्ट एडिटर

यह साउंड इफेक्ट को अंतिम रूप देने के प्रति उत्तरदायी होता है।

मिक्स इंजीनियर

यह किसी भी म्यूजिक को अंतिम रूप देते हैं। साथ ही यह विभिन्न रिकॉर्डिंग ट्रैक को एक रूप में मिलाते हैं।

रिकॉर्डिंग इंजीनियर

इनका कार्य मुख्यत: प्रमुख उपकरणों जैसे माइक्रोफोन, मिक्सर, हेडफोन आदि को सेट करना होता है।

साउंड डिजाइनर

साउंड डिजाइनर किसी भी फिल्म, म्यूजिक एवं प्रस्तुति की साउंड को डिजाइन करने तथा बिखरे हुए तत्वों को मिलाते हैं।

स्टूडियो मैनेजर

साउंड मैनेजर रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो की बुकिंग एवं मेंटेनेंस के प्रति जिम्मेदार होते हैं तथा ये अपनी आर्गेनाइजेशनल स्किल्स के जरिए म्यूजिक प्रोड्यूसर, इंजीनियर एवं म्यूजीशियन को लाभ पहुंचाते हैं। साथ ही ये फाइनेंशियल मामलों को भी देखते हैं।

सेलरी स्ट्रक्चर

बतौर ऑडियो इंजीनियर इनकी सेलरी 10,000 रुपए प्रतिमाह से शुरू होती है तथा मान्यता मिल जाने के बाद इनकी सेलरी में तेजी से इजाफा होता है। तीन से चार साल के अनुभव के बाद इनकी सेलरी 30-35 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। विदेशों में जॉब के अवसर मिलने के बाद सेलरी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।

इसके प्रमुख संस्थान निम्न हैं-

फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे-411004
वेबसाइट www.ftiindia.com

सत्यजीत राय फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता,
वेबसाइट www.srfti.gov.in

एसएई टेक्नोलॉजी कॉलेज, तमिलनाडु
वेबसाइट - www.saeindia.net

एशियन एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, नोएडा-201301
वेबसाइट - www.aaft.co

एनिमेशन डिजाइन

एनिमेशन डिजाइन करें ख्वाबों की दुनिया

‘मैं हूं घटोत्कच, मैं दुनिया में सबसे निराला, धरती हिले, अंबर हिले, उठे जो मेरी गदा..।’ या फिर ‘जंगल-जंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है..।’ ये गाने किसे याद नहीं। इस करिश्मे के पीछे एनिमेशन का ही हाथ है। एनिमेशन के इसी चुलबुले, हंसोड़, जीवंत और ऊर्जावान कैरेक्टर्स को और भी बारीकी से महसूस करना चाहते हैं तो मिकी माउस, टॉम एंड जेरी और बेन-10 जैसे एनिमेटेड कैरेक्टर्स कार्टून नेटवर्क, पोगो, हंगामा और डिज्नी जैसे चैनल्स की टीआरपी बढ़ा रहे हैं। ये तो बातें हैं छोटे परदे की, दुनिया के बड़े परदे पर भी हनुमान, अवतार, श्रेक जैसी फिल्मों के जरिए एनिमेशन का धमाल जारी है। इतना ही नहीं, रुपहले परदे पर कभी गॉडजिला मुंह से आग उगलता है तो सड़कों पर रेंगता दिखता है एलियंस और ऊंची-ऊंची इमारतों पर छलांगें लगाता नजर आता है स्पाइडरमैन। इन सारी करामातों के पीछे जो चीज काम करती है, वह है मल्टीमीडिया और एनिमेशन। अगर विज्ञापन की दुनिया की बात करें तो इसमें भी एनिमेशन का खूब इस्तेमाल हो रहा है। बीते दिनों वोडाफोन का जू-जू तो बड़े-बड़े सुपरस्टार्स को भी मुंह चिढ़ाता नजर आया।

अब आप यह जानना चाहेंगे कि एनिमेशन का मतलब क्या है? इसका अर्थ ही है चुलबुला, जीवंतता, चुहलबाजी और चंचलता। इस चुलबुले माध्यम ने अपने नाम को सार्थक करते हुए कल्पनाशीलता और रचनात्मकता को नए पंख दिए हैं। साथ ही हजारों लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे भी खोले हैं।

एनिमेशन और विजुअल इफेक्ट, 21वीं सदी की प्रमुख नौकरियों में से हैं। मल्टीमीडिया का बहुत बड़ा फलक है और इसमें संचार के एक से ज्यादा माध्यमों का प्रयोग किया जाता है। एनिमेशन में वचरुअल तिलिस्म बनाने के लिए शब्दों, चित्रों, ग्राफिक्स, ऑडियो और वीडियो का इस्तेमाल किया जाता है। इतना सब होने के बावजूद दिलचस्प यह है कि एनिमेशन मल्टीमीडिया का मामूली हिस्सा है।

अन्य देशों के मुकाबले भारत में एनिमेशन के अवसर बढ़ने का कारण यह भी है कि जहां अमेरिका में एक एनिमेटेड फिल्म बनाने के लिए 100 से 175 मिलियन डॉलर खर्च होते हैं, वहीं भारत में इसी फिल्म को बनाने में सिर्फ 15 से 25 मिलियन डॉलर की लागत आती है। इस लिहाज से एनिमेशन फिल्मों में आउटसोर्सिग से भी इसमें मदद मिलेगी।

भारत में वर्तमान में 30 हजार एनिमेटर्स हैं और कुछ सालों बाद लगभग तीन लाख एनिमेटर्स की जरूरत होगी। फिक्की-केपीएमजी रिपोर्ट भी इस बात को पुख्ता करती है कि इंडियन एनिमेशन इंडस्ट्री का मौजूदा साइज करीब 1740 करोड़ रुपये है, जो सालाना 17.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। 2013 तक इसका साइज बढ़ कर 3900 करोड़ रुपए हो जाने की संभावना है। इसके अलावा हिन्दुस्तान की एनिमेशन इंडस्ट्री को क्वालिटी के हिसाब से बेहतर माना जाता है, इसलिए यह एक बड़ा आउटसोर्सिंग सेंटर बनता जा रहा है।

कैसे बनें एनिमेटर ?

एनिमेशन में कुशलता हासिल करने के लिए जरूरी है गहन प्रशिक्षण। यूं तो इस फील्ड में करियर बनाने के लिए किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं होती, लेकिन बेहतर नौकरी के लिए एनिमेशन में डिग्री या डिप्लोमा जरूरी है। एनिमेशन में ऑनलाइन कोर्स सहित बहुत सारे डिग्री और डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध हैं और उनमें दाखिले के लिए न्यूनतम योग्यता 12वीं पास है। सामान्य ग्रेजुएट भी एनिमेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन का कोर्स कर सकते हैं। उधर इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर, इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन जैसे कुछ संस्थानों में एनिमेशन के पीजी कोर्स में आर्किटेक्चर, टेक्नोलॉजी एवं इंजीनियरिंग और फाइन आर्ट्स के ग्रेजुएट्स ही आवेदन कर सकते हैं। इनके अलावा विभिन्न स्टाइल और तकनीक पर फोकस कर रहे ट्रेडिशनल एनिमेशन, स्टॉप मोशन एनिमेशन, रॉटस्कोपिंग, कंप्यूटर जनरेटेड 3डी और 2डी एनिमेशन, क्ले-मेशन, फोटोशॉप, ह्यूमन एनॉटमी, ड्राइंग आदि विशेषज्ञता वाले कोर्स भी उपलब्ध हैं। बस आपके पास कंप्यूटर की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए।

क्रिएटिविटी है बेहद जरूरी

जुनून, क्रिएटिविटी और कुशलता इस फील्ड के लिए बेहद जरूरी है। तभी कोई एनिमेटर किसी स्टोरी पर एक नये आइडिया के साथ काम कर सकता है। धैर्य, अनुशासन और काम के प्रति समर्पण भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह कड़ी मेहनत और एक ही प्रोजेक्ट पर बिना ब्रेक लिए लंबे समय तक डटे रहने का काम है। उसे मानव, जानवरों और पक्षियों के शरीर-विज्ञान और हरकतों, लचक और लाइटिंग इफेक्ट्स की भी अच्छी समझ होनी चाहिए। संचार कुशलता भी जरूरी है, क्योंकि ज्यादातर टीम में काम करना होता है। एनिमेटर को रंग, अनुपात, आकार, डिजाइन, कल्पना, बैकग्राउंड आर्ट और ले-आउट की जानकारी होनी ही चाहिए। उन्हें कंप्यूटर डिजाइन सॉफ्टवेयर में भी महारत चाहिए, प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की जानकारी के साथ फोटोग्राफी और लाइटिंग की समझ भी उतनी ही जरूरी है।

रोजगार के विकल्प

यह नौकरी के असीम अवसरों सहित तेजी से बढ़ रहा उद्योग है और इसमें पूरी एनिमेशन फिल्म से लेकर टेलीविजन, विज्ञापन उद्योग से लेकर ग्राफिक नॉवल, ह्यूमरस बुक्स और मैग्जीन इलेस्ट्रेशन में काम किया जा सकता है। इस फील्ड में बेशुमार अवसर उपलब्ध हैं जैसे वेबसाइट बनाना, ग्राफिक्स बनाना और 3डी प्रोडक्ट की मॉडलिंग। ये ऐसे अन्य काम हैं, जिसमें एनिमेटर रोजगार हासिल कर सकते हैं।

एंटरटेनमेंट, विज्ञापन, बिजनेस, फैशन डिजाइनिंग, इंटीरियर डिजाइनिंग, मेडिकल, लॉ और बीमा कंपनियों के प्रेजेंटेशन और मॉडल बनाने में भी एनिमेशन और वेब डिजाइनिंग के लिए संभावनाएं हैं। खेलों से जुड़े उद्योग, जिनमें वीडियो और मोबाइल गेम्स शामिल हैं, को भी अच्छे एनिमेटर चाहिए। एनिमेटरों के लिए फ्रीलांस के तौर पर काम करना भी कमाऊ विकल्प है, खासकर उनके लिए जो वेब एनिमेशन में पारंगत हैं। भारत में फिलवक्त 300 एनिमेशन स्टूडियो हैं, जिनमें 15 हजार से ज्यादा प्रोफेशनल जॉब में हैं। इस क्षेत्र में जबरदस्त तेजी की वजह अमेरिकी और यूरोपीय स्टूडियो से भारत में आने वाले आउटसोर्स जॉब हैं, इसलिए अच्छे रचनात्मक एनिमेटरों के लिए मौके हमेशा बरकरार रहेंगे।

कार्य प्रकृति

एनिमेशन में तीन तरह से काम होता है। प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन। चरित्रों का निर्माण कल्पना को मूर्त रूप देते समय होता है। प्री प्रोडक्शन में कल्पना को खाके में उतारा जाता है। स्क्रिप्ट लिखना, स्टोरी बोर्ड तैयार करना, पृष्ठभूमि, ले आउट डिजाइनिंग, चरित्र का विकास, एनिमेटिक्स और आवाज का काम प्री प्रोडक्शन के अंतर्गत होता है। स्टोरी का सही नतीजा प्रोडक्शन के दौरान यानी एनिमेशन की मिक्सिंग में देखा जा सकता है। पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान आवाज की अंतिम रिकॉर्डिंग, रंगों का संपादन, टेस्टिंग और विशेष साउंड इफेक्ट आदि का समायोजन किया जाता है। रेंडरिंग द्वारा एनिमेशन के दृश्यों को अमली जामा पहनाया जाता है। इसके तहत डेटा एनिमेशन में बदल दिया जाता है। 3डी एनिमेशन एक टीम वर्क है, जो सृजनात्मक विचारों पर आधारित है। 3डी एनिमेशन मूवी में निम्नलिखित चरणों पर कार्य किया जाता है, जिनमें स्टोरी बोर्डिंग, कैरेक्टर स्केच, कांसेप्ट क्रिएशन मॉडलिंग, एनवायरमेंटस, रिंगिंग, करेक्टर एंड मैकेनिकल एनिमेशन, स्टोरी बोर्ड एनिमेशन, लाइटिंग टेक्सचरिंग प्रमुख हैं।

कौन-कौन से कोर्स हैं ?

भारत और विदेश के अनेक संस्थानों में ऑनलाइन सेवाओं के अतिरिक्त एनिमेशन में ग्रेजुएशन और डिप्लोमा कोर्स कराये जाते हैं। प्रमुख कोर्स हैं- सर्टिफिकेट कोर्स इन एनिमेशन एंड ग्राफिक्स, डिप्लोमा इन एनिमेशन, बीएससी/ एमएससी इन गेमिंग, बीए/एमए इन मल्टीमीडिया। ग्रेजुएशन एवं पोस्ट ग्रेजुएशन के अलावा पीजी डिप्लोमा इन डिजाइन, एडवांस डिप्लोमा इन 3डी फिल्म मेकिंग, 3डी एनिमेशन एंड विजुअल सिनेमेटिक्स भी प्रमुख हैं।

मेकअप आर्टिस्ट

मेकअप आर्टिस्ट: निखारें उनका चेहरा, संवारें अपना भविष्य

‘पा’ फिल्म की रिलीज से पहले जब खबर आई कि अमिताभ बच्चन 13 साल के एक बच्चे का रोल कर रहे हैं तो सबको हैरानी हुई। यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी कि 67 साल का एक लंबा-चौड़ा इंसान आखिर 13 साल के बच्चे का रोल कैसे कर सकता है। लेकिन जब यह फिल्म रिलीज हुई तो उनका लुक देखने के बाद ऐसा लगा कि ऐसा भी हो सकता है। एक बुजुर्ग व्यक्ति को 13 साल का बच्चा भी बनाया जा सकता है। उसी तरह ‘दशावतार’ में कमल हसन भी दस अलग-अलग रूपों में नजर आए। ‘अप्पू राजा’ और ‘चाची 420’ में भी उनका हुलिया अलग ही था। पहली नजर में हम इसे करामात ही कहेंगे। और इस करामात के पीछे काम करता है एक मेकअप आर्टिस्ट। यानी मेकअप आर्टिस्ट किसी जवान इंसान को बूढ़ा बना देता है तो बूढ़े इंसान को जवान। यही नहीं, मेकअप में वो ताकत है, जो चरित्र के हिसाब से कलाकार का पूरा व्यक्तित्व बदल दे। मेकअप के सहारे जवान बूढ़ा दिख सकता है और बूढ़ा जवान, सुंदर कुरूप लग सकता है और कुरूप खूबसूरत। बाल नहीं हैं तो बाल आ जाएंगे और हैं तो गायब हो जाएंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि मेकअप चेहरे और चरित्र को बदलने में अपना जादुई असर डालता है। इसी के सहारे प्रदर्शनकारी कलाओं में निखार दिखता है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण कथकली है, जिसमें कलाकार का मेकअप उसे पौराणिक चरित्र बना देता है।

मेकअप का यही कमाल ब्यूटी पालर्स से होकर गुजरता है। सुंदर दिखने-दिखाने की चाहत व्यक्तिगत रुचि से लेकर व्यावसायिक कौशल तक फैली हुई है। यही कारण है कि मेकअप करना एक खास किस्म का हुनर है। पार्टियों में जाने के लिए किए जाने वाले मेकअप से लेकर कलाकारों के मेकअप तक इसकी उपयोगिता से सभी परिचित हैं, लिहाजा यह मेकअप करना शौक भी हो सकता है और एक कामयाब करियर भी।

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले तक करियर के रूप में इसे अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था, लेकिन अब बाजार के बड़े-बड़े नामों ने इसमें सम्मान जोड़ दिया है। कुछ कामयाब नाम हैं- शहनाज हुसैन, भारती तनेजा, वंदना लूथरा, ब्लॉसम कोचर, सिल्वी इत्यादि। इन्होंने मेकअप आर्टिस्ट के रूप में शुरुआत की और आज बिजनेस ब्रांड के रूप में पूरे देश में जाने जाते हैं।

यही वजह है कि अब मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर करियर बनाने के इच्छुक युवा ट्रेनिंग लेने लगे हैं, ब्यूटी चेन में अच्छी जॉब उन्हें मिलने लगी है और कम पूंजी में खुद का व्यवसाय शुरू करने लगे हैं। लेकिन इसके पीछे जो सबसे जरूरी चीज है, वह है सौंदर्यबोध। अगर आप में सौंदर्य को लेकर सोचने की ताकत है तो आप मेकअप आर्टिस्ट के रूप में अपने करियर को नया आयाम दे सकते हैं। फिक्की की ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि ब्यूटी इंडस्ट्री 30 फीसदी की दर से सालाना वृद्घि कर रही है। दरअसल मेकअप एक कला है, और इसके प्रति रूझान भीतर से ही होना चाहिए, तभी कोई मेकअप आर्टिस्ट किसी साधारण व्यक्ति को असाधारण बना सकता है। कुछ समय पहले तक चेहरे पर पाउडर पोत लेना, इत्र छिड़क लेना, दाढ़ी-मूंछ बना लेना ही मेकअप था, लेकिन अब मेकअप का मतलब है दूसरों को सम्मोहित करना। आज मेकअप आर्टिस्ट सिर्फ फैशन मॉडल्स अथवा फिल्मी सितारों की ही जरूरत नहीं है। दूसरी जगहों पर भी इसकी खास डिमांड है।

खासकर शादी के सीजन में इन लोगों की डिमांड बढ़ जाती है। अब तो इसमें भी स्पेशलाइजेशन हो गया है, जैसे कोई सिर्फ दूल्हे का मेकअप करता है तो कोई दुल्हन का। यहां आपको यह बता दें कि हर माध्यम के लिए अलग-अलग मेकअप होता है। टीवी/फिल्मी कलाकारों का मेकअप अलग होता है तो थिएटर में काम करने वालों का अलग। स्टेज आर्टिस्ट का मेकअप टीवी आर्टिस्ट की तुलना में चटक होगा। किसी कैरेक्टर को उसकी उम्र से अलग दिखाना है तो उसका मेकअप अलग होगा, वहीं जले या दाग दिखाने के लिए मेकअप अलग होगा। शहर और वहां की जलवायु के मुताबिक भी मेकअप किया जाता है। जैसे मुंबई में हवा में नमी रहती है, इसलिए पसीने को ध्यान में रख कर ऐसा मेकअप करना पड़ता है कि वह खराब न हो। वहीं राजस्थान में मेकअप के लिए अलग चीजों का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह तभी संभव है, जब मेकअप आर्टिस्ट को इसका ठीक-ठीक ज्ञान हो कि स्थान, उम्र और जरूरत के लिहाज से कैसा मेकअप होना चाहिए।

गुण क्या हो?

इस प्रोफेशन में भी करियर बनाने के लिए कुछ विशेष गुणों की दरकार है। सबसे पहले उसमें विजुअलाइजेशन की क्षमता होनी चाहिए कि कौन सा स्टाइल या गेटअप किस पर फबेगा। उसे ऐसा रूप देना कि खुद को देख कर उसमें आत्मविश्वास भर जाए। कभी-कभी कई घंटों तक काम करना होता है, खासकर टीवी और फिल्म की शूटिंग के दौरान। शारीरिक और मानसिक रूप से उसका फिट होना बहुत जरूरी है, तभी वह अपने काम को सही-सही अंजाम दे पाएगा। आप में रंग और उसके असर की बारीक समझ होनी चाहिए। मेकअप आर्टिस्ट बनने के लिए आपका व्यवहार दोस्ताना होना चाहिए, तभी जिसका आप मेकअप करने जा रहे हैं, उसे बिना उबाए या थकाए उसका मनपसंद गेटअप आप उसे दे पाएंगे। इसके अलावा खुद भी आकर्षक दिखना जरूरी है। फैशन इंडस्ट्री में स्टाइल और ट्रैंड रोज बदलते हैं, इसलिए नई-नई तकनीक, हेयरस्टाइल्स और कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट के बारे में उसे अपडेट रहना होगा।

योग्यता क्या हो?

मेकअप आर्टिस्ट बनने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है और न ही किसी प्रकार की योग्यता की। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने स्कूल या कॉलेज में कौन सा विषय लिया था। बस आप में इस काम के प्रति लगाव होना चाहिए। अगर ऐसा है तो आपके लिए करियर की राहें आसान हैं। अगर 10वीं या 12वीं पास हैं तो और भी बेहतर।

कोर्स व विषय का चुनाव

इस फील्ड में करियर बनाने के लिए आप ब्यूटीकेयर के अंतर्गत अन्य विषयों जैसे ब्यूटीशियन, मैनिक्यूरिस्ट, पैडिक्यूरिस्ट, इलेक्ट्रोलॉजिस्ट व अरोमा थेरेपी विषयों में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं। इसके अलावा आप किसी संस्थान से भी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। संस्थानों द्वारा संचालित कोर्सेज के पाठयक्रम में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, डाइट, सेल्समैनशिप व सैलून आर्गेनाइजेशन से संबंधित थ्योरी पढ़ाई जाती है। वहीं प्रैक्टिकल वर्क के रूप में फेशियल, डिफरेंट टाइप ऑफ मसाज, मेकअप व इलेक्ट्रिक ट्रीटमेंट सिखाया जाता है। इसके तहत एडवांस्ड डिप्लोमा इन कॉस्मेटोलॉजी, डिप्लोमा इन ब्यूटीकल्चर और सर्टिफिकेट कोर्स इन स्किन केयर जैसे कोर्स फिलवक्त प्रचलन में हैं।

कहां-कहां हैं मौके?

फिल्म/टीवी/वीडियो/रंगमंच/फैशन/ विज्ञापन एजेंसियों में तो बेशुमार जॉब हैं ही, तेजी से खुल रहे न्यूज चैनलों में भी मेकअप आर्टिस्ट की डिमांड है। वर्तमान में फिल्म व टेलीविजन इंडस्ट्री में मेकअप व हेयर ड्रेसिंग एक्सपर्ट की मांग बढ़ती जा रही है। इन एक्सपर्ट्स को फिल्म इंडस्ट्री में आर्टिस्ट के नाम से जाना जाता है। फिल्म इंडस्ट्री में करियर बनाने के लिए आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि स्टूडियो की चकाचौंध लाइट में एक्टर का मेकअप कैसे किया जाता है। बतौर फ्रीलांस भी इसमें हैं ढेरों काम। फैशन आर्गेनाइजर, ब्यूटी पार्लरों, सिलेब्रिटीज के लिए बड़े पैमाने पर काम है।

प्रशिक्षण शुल्क

मेकअप आर्टिस्ट बनने के लिए विभिन्न संस्थानों में फीस के तौर पर 10 हजार से 50 हजार लिए जाते हैं। बड़े ब्रांड वाले संस्थानों में प्रशिक्षण शुल्क ज्यादा हो सकता है। कुछ तो ब्यूटी पार्लर से प्रशिक्षण लेकर भी शानदार करियर बना लेते हैं।

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग: प्रोग्रामिंग कर तय करें अपना कद

कम्प्यूटर के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग अर्थात् कम्प्यूटर की भाषा का ज्ञान होना अत्यावश्यक है। c++, Java script, विजुअल बेसिक (वीबी), डॉट वेट, एचटीएमएल, डीएचटीएमएल, सीआईसी, ओरेकल, लाइनेक्स, यूनिक्स, असेम्बली इत्यादि ऐसी अनेक भाषाएं हैं, जो कम्प्यूटर में प्रोग्राम बनाते हुए प्रयोग में लाई जाती हैं। चूंकि कम्प्यूटर एक मशीन है, अत: इससे बातचीत व विचार-विमर्श का माध्यम भी मशीनी ही है। पुराने समय में अबेकस तथा कोड के माध्यम से कोडन किया जाता था, परंतु बदलते समय के साथ भाषाओं में भी परिवर्तन आ गया है। मूल रूप से कम्प्यूटर की भाषाओं को तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है-

1. प्रक्रियात्मक या वस्तु उन्मुख भाषाएं- ये भाषाएं मूल रूप से डिजाइनिंग करते वक्त काम आती हैं, जो OOAD द्वारा स्वचालित हैं।
2. कार्यात्मक भाषाएं- ये मॉडल चलित भाषाएं हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर, वास्तुकला इत्यादि में किया जाता है। ये MDA चालित हैं।
3. तर्क भाषाएं- ये विशिष्ट प्रकार के प्रोजेक्ट बनाते वक्त उपयोग में लाई जाती हैं, जहां तार्किक क्षमता तथा विश्लेषण की खास आवश्यकता होती है। ये UML चालित हैं। इनके अलावा कम्प्यूटर की भाषाओं को विभिन्न प्रकार से मापा जाता है, जैसे कोबोल, मेनफ्रेम, फोरट्रोन, स्किप्ट भाषा बेब सी में हुए अनुप्रयोग इत्यादि हैं।
कम्प्यूटर की किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसके बुनियादी निर्देश से अवगत होना अति आवश्यक है। सबसे पहले आपको कम्प्यूटर के बेसिक एप्लीकेशन का भरपूर ज्ञान होना आवश्यक है, जैसे एमएस ऑफिस, इंटरनेट, ई-मेल, कम्प्यूटर से जुड़े सिद्धांत इत्यादि। इसके बाद इनपुट-आउटपुट यूनिट, डिवाइस, उनका प्रयोग करना प्रदर्शन डेटा का ज्ञान, अंकगणतीय ज्ञान व प्रदर्शन, सशर्त निष्पादन, पुनरावृत्ति इत्यादि से अवगत होना भी आवश्यक है। कम्प्यूटर की ये भाषाएं प्रोग्राम बनाते वक्त उनके कोड, संकलन, दस्तावेजीकरण, एकीकरण, रखरखाव, आवश्यकताओं के विश्लेषण, सॉफ्टवेयर, वास्तुकला, सॉफ्टवेयर परीक्षण, विनिर्देश, डिबगिंग इत्यादि में काम आती हैं। प्रोग्रामिंग में इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न भाषाओं की जानकारी वैसे तो इंजीनियरिंग करने वाले हर छात्र को प्रदान की जाती है, परंतु यदि छात्र चाहे तो इसमें अलग से डिप्लोमा कोर्स करके विशिष्टता प्राप्त कर सकता है।

याद रहे कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के बिना कम्प्यूटर शिक्षा अधूरी है। यह रेगुलर व पत्रचार दोनों माध्यमों से की जा सकती है। इनके अलावा यदि छात्र कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में डिप्लोमा करना चाहते हैं तो उन्हें विभिन्न भाषाओं का चयन करना होगा। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कोर्स 6 महीने की अवधि से लेकर 2 साल तक किये जा सकते हैं। छात्र चाहें तो डिक्स अथवा डोएक नामक सरकारी संस्थानों से O.A.B. लेवल परीक्षा पास करके भी सर्टिफाइड कम्प्यूटर इंजीनियर बन सकते हैं। इन सभी की मूलभूत योग्यता 10+2 तथा ग्रेजुएशन है। B. लेवल की परीक्षा एमसीए के समकक्ष मानी जाती है और सरकारी नौकरी में भी प्राथमिकता दी जाती है। ये सभी कोर्स फुल-टाइम तथा पार्टटाइम दोनों ही समयावधि के अनुसार किए जा सकते हैं। इस प्रकार कम्प्यूटर के आविष्कार ने जहां इंफोर्मेशन टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, वहीं इसके उपयोगकर्ताओं के सामने देश-विदेश में कार्य करने हेतु रोजगार के अनेक स्वर्णिम अवसर खोल दिए हैं।

यहां पर कुछ कंप्यूटर कोर्स व उनकी अवधि की टेबल दी जा रही है, जिनको करके छात्र कंप्यूटर फील्ड में अपना करियर बना सकते हैं।

आज ऐसा कोई भी क्षेत्र बाकी नहीं रह गया है, जहां कंप्यूटर शिक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रगतिशील देश होने के नाते भारत में इसकी विशेष उपयोगिता है। अत: कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में करियर बनाने वाले दो प्रकार के अध्ययनों द्वारा इस क्षेत्र में आ सकते हैं- पहला कम्प्यूटर में तकनीकी डिग्री प्राप्त करके, दूसरा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में डिप्लोमा करके।

दोनों ही माध्यमों द्वारा छात्रों को कम्प्यूटर पर प्रोग्रामिंग बनाना तथा उसे प्रयोग में लाना सिखाया जाता है, ताकि कम्पनी बहुत ही कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम कर पाए। इनमें पंजीकरण, फाइलें बनाना व संभालना, विश्लेषण करना, प्रस्तुतिकरण इत्यादि प्रमुख हैं।

कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के शुरुआती दौर में छात्रों को एसेम्बली, सी, सी++,जावा स्क्रिप्ट, ऑरेकल डॉस इत्यादि भाषाओं की जानकारी दी जाती है। किसी भी प्रोग्राम को बनाने में इन भाषाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके बाद छात्रों को विजुअल बेसिक (वीबी), एसक्यूएल, डॉटवेट, डाटा स्ट्रक्चर, डाटा बेस मैनेजमेंट इत्यादि की जानकारी दी जाती है, ताकि छात्र उनका उपयोग करना सीख सकें। ईआरपी कुछ इसी प्रकार के एडवांस सॉफ्टवेयर हैं, जो स्पेशलाइजेशन द्वारा पेपर-वर्क काफी हद तक कम कर देते हैं। भारत में इस प्रकार के सॉफ्टवेयर बनाने में सैप कम्पनी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

इसके अलावा छात्रों को फ्रंट-एंड तथा बैंक एंड यानी स्टोरेज के तरीकों से भी अवगत कराया जाता है। फ्रंड-एंड प्रोग्राम मॉनिटर स्क्रीन पर विंडोज की तरह चलाए जाते हैं, जबकि बैक-एंड डोस केवल की-बोर्ड द्वारा ही संचालित किए जा सकते हैं। इनमें माउस का इस्तेमाल ना के बराबर होता है।

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के अंतर्गत एडवांस टेक्नॉलोजी एम्बेडिड है। इसके द्वारा बड़े-बड़े प्रोग्राम कम्पनियों द्वारा बनाए जाते हैं। इसके अंतर्गत चिप प्रोग्रामिंग, जिसका इस्तेमाल विशेष तौर पर मोबाइल तथा अन्य तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल के दौरान दिखाया जाता है। इसका इस्तेमाल करने पर पेपर-वर्क ना के बराबर हो जाता है।
कुछ अन्य विशिष्ट प्रकार के सॉफ्टवेयर विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार भी बनाए जाते हैं, जैसे लाइब्रेरी के लिए लाइब्रेरी मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर, एकाउन्टिंग ट्रांजेक्शन के लिए मर्लिन इत्यादि। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी इसका जीवंत उदाहरण है। यहां इसकी हर शाखा में कोहा कम्पनी द्वारा संचालित कोहा सॉफ्टवेयर चलाया जाता है, जो धारक की हर सूचना को बहुत ही सहज ढंग से एक ही क्लिक द्वारा प्रस्तुत कर देता है। दिल्ली में यह पहली लाइब्रेरी है, जिसने यह सेवा सभी के लिए फ्री में उपलब्ध करवाई है। अब इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल चंडीगढ़ की चितकारा यूनिवर्सिटी तथा अन्य यूनिवर्सिटी भी कर रही हैं। यह सॉफ्टवेयर पर्ल भाषा पर आधारित है तथा लाइनेक्स इत्यादि भाषाओं का भी प्रयोग किया हुआ है।

इस प्रकार कम्प्यूटर के क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग का विशेष महत्त्व है। यह संचार का अभिन्न अंग है, जिसकी वजह से तकनीकी विज्ञान जीवन्त है। इसे अपनी सूझ-बूझ व क्षमता के अनुसार बहुत ही उपयोगी तथा विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। यह सब उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है।

ट्रांसलेटर/ इंटरप्रेटर दो संस्कृतियों को समझने की कला

ट्रांसलेटर/ इंटरप्रेटर दो संस्कृतियों को समझने की कला

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की पहल पर चार साल पहले देश में राष्ट्रीय अनुवाद मिशन बनाया गया। करीब 74 करोड़ रुपये बजट वाले इस मिशन का काम विभिन्न भारतीय भाषाओं को अनुवाद के जरिए जन-जन तक पहुंचाना है। देश में अनुवाद की उपयोगिता की यह सिर्फ एक बानगी है। व्यापक स्तर पर देखें तो विश्व को एक गांव बनाने का सपना पूरा करने में अनुवादक आज अहम भूमिका निभा रहा है। चाहे विदेशी फिल्मों की हिन्दी या दूसरी भाषा में डबिंग हो या फैशन की नकल, इंटीरियर डेकोरेशन का काम हो या ड्रेस डिजाइनिंग, अनुवादक की हर जगह जरूरत पड़ रही है। संसद की कार्यवाही का आम जनता तक पलक झपकते पहुंचाने का काम भी अनुवादक के जरिए ही संभव होता है। इसके जरिए हम कुछ वैसा ही अनुभव करते और सोचते हैं, जैसा दूसरा कहना चाहता है। एक दूसरे को जोड़ने में और परस्पर संवाद स्थापित करने में अनुवादक की भूमिका ने युवाओं को भी करियर की एक नई राह दिखाई है। इस क्षेत्र में आकर कोई अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ अच्छा-खासा पैसा कमा सकता है। अनुवादक और इसी से जुड़ा इंटरप्रेटर युवाओं के लिए करियर का नया क्षेत्र लेकर हाजिर है।

अनुवादक की कला से रू-ब-रू कराने के लिए आज विश्वविद्यालयों और विभिन्न शिक्षण संस्थानों में कोर्स भी चल रहे हैं। यह कोर्स कहीं डिप्लोमा रूप में हैं तो कहीं डिग्री के रूप में। अनुवाद में आज विश्वविद्यालयों में एम. फिल, पीएचडी का काम भी जगह-जगह कराया जा रहा है। हालांकि अनुवाद का काम महज डिग्री व डिप्लोमा से ही सीखा नहीं जा सकता। इसके लिए निरंतर अभ्यास और व्यापक ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है। यह दो भाषाओं के बीच पुल का काम करता है। अनुवादक को इस कड़ी में स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में जाने के लिए दूसरे के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भी ज्ञान हासिल करना पड़ता है। एक प्रोफेशनल अनुवादक बनने के लिए आज कम से कम स्नातक होना जरूरी है। इसमें दो भाषाओं के ज्ञान की मांग की जाती है। उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी-हिन्दी का अनुवादक बनना है तो आपको दोनों भाषाओं की व्याकरण और सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान जरूर होना चाहिए।

अनुवाद की कला में दक्ष युवाओं के लिए आज विभिन्न सरकारी संस्थानों, निजी संस्थानों, कंपनियों और बैंकों में काम के कई अवसर हैं।
ज्यादातर राज्यों की राजभाषा और संपर्क भाषा होने के कारण हिन्दी अनुवादक की आज देश के विभिन्न सरकारी संस्थानों में सबसे अधिक मांग है। कर्मचारी चयन आयोग इसके लिए हर वर्ष प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करता है। इसमें हिन्दी या अंग्रेजी से स्नातक व स्नातकोत्तर की योग्यता की मांग की जाती है। डिग्री के अलावा कई जगहों पर अनुवाद में डिप्लोमा की भी जरूरत पड़ती है।

केन्द्रीय स्तर पर लोकसभा, राज्यसभा और विभिन्न मंत्रालयों में अनुवादक की जरूरत होती है। सरकारी संस्थानों के अलावा बैंकों, बीमा कंपनियों व कॉरपोरेट सेक्टर में अनुवादक को काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं।

बैंकों में राजभाषा अधिकारी ही अनुवाद के काम को पूरा कराता है, इसलिए वहां अनुवादक की भूमिका बदल जाती है। वहां अनुवादक की योग्यता रखने वाले युवा को राजभाषा अधिकारी के रूप में काम करने का मौका मिलता है। कई जगहों पर हिन्दी सहायक के रूप में काम करने का मौका मिलता है। धीरे-धीरे अनुभव और उम्र के साथ पदोन्नति होती है। अनुवादक को सहायक निदेशक, उपनिदेशक और निदेशक के रूप में काम करने का मौका मिलता है। अनुवादक स्वतंत्र रूप से भी अपना काम कर सकता है। चाहे तो कोई अनुवाद ब्यूरो खोल कर भी विभिन्न निकायों और संस्थाओं में अनुवाद के काम को कर सकता है।

सरकारी स्तर से हट कर देखें तो अनुवादक का काम ज्यादातर क्षेत्रों में है। चाहे मीडिया जगत हो, फिल्म इंडस्ट्री, दूतावास हो या कोई संग्रहालय, व्यापार मेला हो या फिर शहरों में लगने वाली प्रदशर्नियां।

सामान्यत: आम लोगों को किसी भाषा और कला का मर्म आमतौर पर अनुवाद के जरिए ही समझाया जाता है। अनुवाद सिर्फ अंग्रेजी-हिन्दी या हिन्दी-अंग्रेजी ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विदेशी भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद कमाई के लिहाज से काफी अच्छा विकल्प है।

मसलन यहां स्पैनिश से अंग्रेजी या हिन्दी या अन्य दूसरी भाषा में अनुवाद करने का पैसा ज्यादा मिलता है।

अनुवादक बनाम इंटरप्रेटर

अनुवाद एक लिखित विधा है, जिसे करने के लिए कई साधनों की जरूरत पड़ती है। मसलन शब्दकोश, संदर्भ ग्रंथ, विषय विशेषज्ञ या मार्गदर्शक की मदद से अनुवाद कार्य को पूरा किया जाता है। इसकी कोई समय सीमा नहीं होती। अपनी मर्जी के मुताबिक अनुवादक इसे कई बार शुद्धिकरण के बाद पूरा कर सकता है। इंटरप्रेटशन यानी भाषांतरण एक भाषा का दूसरी भाषा में मौखिक रूपांतरण है। इसे करने वाला इंटरप्रेटर कहलाता है। इंटरप्रेटर का काम तात्कालिक है। वह किसी भाषा को सुन कर, समझ कर दूसरी भाषा में तुरंत उसका मौखिक तौर पर रूपांतरण करता है। लोकसभा के सेवानिवृत्त इंटरप्रेटर सुभाष भूटानी कहते हैं, इसे मूल भाषा के साथ मौखिक तौर पर आधा मिनट पीछे रहते हुए किया जाता है। बहुत कुछ यांत्रिक ढंग का भी होता है। हालांकि करियर के लिहाज से देखें तो इंटरप्रेटर को लोकसभा में प्रथम श्रेणी के अधिकारी का दर्जा प्राप्त है। यहां यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। भूटानी के मुताबिक संसद में अनेक भाषा के प्रतिनिधि रहते हैं। उन्हें उनकी भाषाओं में समझाने का काम इंटरप्रेटर ही करता है। उनकी मूल भाषा में कही गई बात को संसद में भी रखता है। लोकसभा के अलावा ऐसे सम्मेलन, जहां अनेक भाषा के लोग होते हैं, उन्हें एक भाषा में कही गई बात को उसी समय दूसरी भाषा में बताने और समझाने का काम इंटरप्रेटर ही करता है। सरकारी के अलावा विदेशी कंपनियों को किसी देश में व्यवसाय स्थापित करने या टूरिस्ट को भी इंटरप्रेटर की जरूरत पड़ती है। एक इंटरप्रेटर यहां भी स्वतंत्र रूप में अपनी सेवा दे सकता है।

विदेश मंत्रालय में दूसरे देश के प्रतिनिधियों से होने वाली बातचीत या वार्तालाप को इंटरप्रेटर ही अंजाम देता है। भारत से अगर कोई शिष्ट मंडल दूसरे देश में जाता है तो वहां भी इंटरप्रेटर साथ में चलता है।

जहां तक कोर्स का सवाल है, भूटानी कहते हैं, सरकारी संस्थानों में इसके लिए कोई कोर्स नहीं चल रहा है। दरअसल यह अनुवाद पाठ्यक्रम का ही एक हिस्सा है। अनुवाद कोर्स में इस विधा के बारे में अलग से बताया जाता है। जब इंटरप्रेटर की नियुक्ति होती है तो उसे पहले लिखित परीक्षा से गुजरना होता है।

कोर्स

अनुवादक बनने के लिए विश्वविद्यालयों में मूल तौर पर डिप्लोमा और डिग्री कोर्स है। डिप्लोमा एक साल का होता है। इसमें दाखिला लेने के लिए किसी भाषा में स्नातक होना जरूरी है। साथ ही दूसरी भाषा के ज्ञान और पढ़ाई की भी मांग की जाती है। मसलन अंग्रेजी-हिन्दी डिप्लोमा कोर्स दोनों का ज्ञान होना जरूरी है। इनमें से छात्र ने किसी एक में स्नातक किया हो और इसके साथ ही साथ दूसरी भाषा भी पढ़ी हो। एमए कराने का मकसद छात्रों को अनुवादक बनाने के अलावा अनुवाद के क्षेत्र में शोध और अध्यापन की ओर ले जाना होता है। विश्वविद्यालयों में अनुवाद में एमफिल और पीएचडी का भी कोर्स कराया जा रहा है।

एडमिशन अलर्ट

एमएएचएआर का डिग्री कोर्स

देहरादून स्थित मधुबन एकेडमी ऑफ हॉस्पिटैलिटी एडमिनिस्ट्रेशन एंड रिसर्च (एमएएचएआर) ने 2010-2013 के शैक्षणिक सत्र के लिए अपने तीन वर्षीय डिग्री कोर्स बीए इंटरनेशनल हॉस्पिटैलिटी एडमिनिस्ट्रेशन की घोषणा की है। यह इग्नू और सिटी एंड गिल्ड्स ऑफ लंदन इंस्टीटय़ूट द्वारा मान्यता प्राप्त डिग्री कोर्स है। यह कोर्स अपनी तरह का पहला लर्निंग सिस्टम है, जो अमेरिका होटल एंड लॉजिंग एजुकेशन इंस्टीटय़ूट के पाठय़क्रमों को लागू कर रहा है। द्वितीय वर्ष में 22 सप्ताह की इंडस्ट्रियल एक्सपोजर ट्रेनिंग को पूर्ण करने के बाद अगली शैक्षणिक अवधि में दाखिला निश्चित होगा। इसके लिए छात्र का अंग्रेजी के साथ 12वीं पास होना अनिवार्य है। www.maharedu.com

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट:

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट: प्रबंधन खेल-खेल में



आईपीएल का खुमार अभी उतरा भी नहीं था कि टेलीविजन से लेकर कॉलोनी के पार्क तक फीफा वर्ल्ड कप की धूम मची हुई है। हो भी क्यों न, भारत में खेल देखा नहीं, बल्कि जीया जो जाता है। आज हर तरफ फीफा की धूम मची हुई है। कोई रोनाल्डो बना घूम रहा है तो कोई मैसी। जिसे देखो, अपनी दीवानगी जाहिर करने के लिए नए-नए उपाय करता नजर आ रहा है। आज से दो दशक पहले की बात करें तो क्या क्रिकेट और क्या फुटबाल, दर्शकों की दीवानगी तो खूब दिखी, लेकिन जुनूनी हद तक कभी नजर नहीं आई। माया का बढ़ता प्रभाव कहें या फिर आम और खास आदमी की भारी होती जेब, आज जिस तरह का बदलाव नजर आ रहा है, उसने साबित कर दिया कि मार्केट में खेल भी बिकता है।

क्रिकेट, फुटबॉल तो फिर भी खासे पापुलर खेल हैं, आज तो हॉकी, बैडमिंटन से लेकर बॉक्सिंग तक और टेनिस से लेकर कुश्ती तक हर खेल और उसके खिलाड़ी दर्शकों के पसंदीदा बनते जा रहे हैं। खिलाड़ी जो चला वह अर्श पर और जो असफल रहा वह फर्श पर। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि खेल-खिलाड़ियों की दुनिया में इतनी रंगीनी, लोगों की इतनी दिवानगी अचानक कैसे पैदा हुई तो जवाब मिलता है मार्केटिंग फिट हो तो सब हिट। बस यही बात अहम है, जो आज स्पोर्ट्स चाहे वो क्रिकेट हो या फिर हॉकी या निशानेबाजी, सभी के लिए टीवी से लेकर स्टेडियम तक, क्लब से लेकर कॉलोनी की सड़कों तक दर्शकों का अच्छा-खासा जमावड़ा लगने लगा है। इस दीवानगी से दर्शकों को चाहे जो मिले, आयोजकों को मोटी आमदनी जरूर हो जाती है। खेल के साथ मुनाफे को जोड़ने में उम्दा मैनेजरों की भूमिका किसी से छुपी नहीं है और यही वह कारण है कि आज स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एक पॉपुलर करियर ऑप्शन के तौर पर पहचान बना रहा है।

क्या है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट

मैनेजमेंट से सीधा पर्याय है बेहतर प्रबंधन, फिर वह चाहे स्पोर्ट्स मैनेजमेंट ही क्यों न हो। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का सीधा अर्थ है खिलाड़ियों के खेल से परे एक मैच के आयोजन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज का बेहतर प्रबंधन। चूंकि आज खेल का सीधा सम्बंध मुनाफे से जुड़ गया है, सो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का अर्थ है एक आयोजन का इस तरह से मैनेजमेंट करना, जिससे कि उम्दा आयोजन के साथ-साथ अधिकतम मुनाफा कमाया जा सके। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए सबसे पहली अनिवार्य योग्यता है खेल और उससे जुड़े तमाम पहलुओं से जुड़ा होना। बैचलर डिग्री कोर्स के लिए बारहवीं पास उम्मीदवारों का मैरिट के आधार पर दाखिला होता है, जबकि पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री व डिप्लोमा पाठय़क्रमों के लिए कम से कम 40 फीसदी अंकों से ग्रेजुएट होना जरूरी है। इसी तरह स्पोर्ट्स इकोनॉमिक्स एंड मार्केटिंग सरीखे सर्टिफिकेट कोर्स के लिए आवेदक का बारहवीं पास होना ही पर्याप्त है यानी जैसी योग्यता, वैसे पाठय़क्रम में अध्ययन का अवसर यहां उपलब्ध है।

विस्तृत होता दायरा यानी भरपूर विकास

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का दायरा बेहद विस्तृत है यानी इसमें विकास की भरपूर सम्भावनाएं मौजूद हैं। यह एक ऐसी फील्ड है, जिससे जुड़े प्रोफेशनल खेल को जानते तो हैं, लेकिन खिलाड़ी नहीं हैं। ऐसे लोग खेलते तो नहीं हैं, लेकिन खेल से होने वाले मुनाफे व उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों में इनकी भूमिका अहम होती है। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के तहत आने वाली फील्ड की बात करें तो इसमें ब्रांड-इंडोर्समेंट, स्पोर्ट्स गुड्स प्रमोशन, फैशन-गैजेट प्रमोशन, ग्राउंड अरेंजमेंट, सिलेब्रिटी मैनेजमेंट, स्पोर्ट्स एजेंट और स्पोर्ट्स टूरिज्म जैसी कई स्पेशलाइज्ड फील्ड आती हैं। इन सभी में कहीं न कहीं एक अच्छा मैनेजर ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाने का प्रयास करता है और यही उसकी विशेषज्ञता की असल पहचान होती है। मतलब खिलाड़ी अपना खेल खेलता है, लेकिन उसके माध्यम से होने वाली कमाई का खेल और उसका प्रबंधन स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कहलाता है। खिलाड़ी के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और तो और उसके हैल्थ ड्रिंक के प्रमोशन तक से मुनाफा कमाया जा रहा है।

आज के दौर में उपयोगिता

रोनाल्डो की टी-शर्ट हो या फिर सचिन तेंदुलकर की दस नम्बरी टी-शर्ट, मार्केट में उतरने के बाद भले उसे तैयार करने की लागत 100 रुपये ही क्यों न हो, फैंस उसे 500 व 1000 रुपये में यूं ही खरीद लेते हैं। यही है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का मार्केटिंग फंडा। आज के दौर में कभी खेल के मैदान पर नजर आने वाले स्पोर्ट्स शूज हमारी दैनिक जरूरत का सामान बन चुके हैं। हम और आप बेहद शान के साथ उन जूतों को पहन ऑफिस तक तन कर पहुंच जाते हैं। यही है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का प्रभाव। आज के दौर में इसकी बढ़ी उपयोगिता का अंदाजा लगाने की बात की जाए तो क्रिकेट में सचिन बिकता है तो फुटबॉल में बाईचुंग भूटिया। आज के दौर में कुश्ती के सुशील कुमार की पहचान किसी से छिपी नहीं और न ही बॉक्सिंग प्लेयर विजेन्द्र व अखिल कुमार की। खेल चाहे जो हो, आज मार्केटिंक के बूते आम जनता के बीच सब बिक रहा है। मुनाफे की इस अंधी दौड़ में कमाने वाला जम कर कमा रहा है। दर्शकों का रूझान नई-नई उपलब्धियों को देख कर नए-नए खेलों की ओर बढ़ रहा है।

आईपीएल मैच की बात करें तो यहां तो भारतीय खिलाड़ियों का जमावड़ा नजर आता है, लेकिन फीफा जिसमें भारतीय प्रतिनिधित्व भी नहीं है तो भी भारतीय दर्शकों के बीच यह खेल इस कदर पैठ बना चुका है कि रात 12 बजे लोग मैच देखते हैं और सुबह उठ कर मैदान में फुटबॉल के साथ अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाते हैं।
खेल के प्रति बढ़ी यही दीवानगी है, जिसके लिए आम आदमी की जेब से पैसा निकलते देर नहीं लगती और इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए ही स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एक्सपर्ट जुटे रहते हैं। मैदान के अंदर और बाहर हर जगह, हर तरह से मुनाफा कमाया जा रहा है। पुलेला गोपीचंद को प्रसिद्ध मिली तो अपनी अकेडमी खोल औरों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है। मार्केटिंग अपने आप ही हो गई, जब एक स्टार खिलाड़ी ही अकेडमी खोल सिखाएगा तो भीड़ जुटना तो लाजमी है।

यही वह कारण है कि रोहतक की सायना नेहवाल हैदराबाद तक पहुंच जाती है। आज साइना अपने आप में एक चर्चित नाम है। ऐसा नाम, जिसके आधार पर मार्केट में मुनाफा कमाया जा रहा है।

सरहद पार पढ़ना है

सरहद पार पढ़ना है एविएशन तो जाएं यूक्रेन
प्रस्तुति


एसोचैम द्वारा की गई रिसर्च एवं स्टड;ी के मुताबिक विदेशों में करीब 45 लाख भारतीय छात्र अध्ययन कर रहे हैं तथा वे प्रतिवर्ष लगभग 58,500 करोड़ रुपए (13 बिलियन यूएस डॉलर) खर्च करते हैं। 90 फीसदी से भी अधिक छात्र आईआईटी एवं आईआईएम सरीखे संस्थानों में दाखिला लिए हैं। अन्य देशों की भांति पिछले कुछ वर्षों से यूक्रेन का एजुकेशन सिस्टम, इंफ्रास्ट्रक्चर भी विश्व स्तरीय बनने की राह पर चल पड़ा है। वहां की यूनिवर्सिटी को ऐसे 10 देशों में शामिल किया जाता है, जो भारी संख्या में विदेशी छात्रों को अध्ययन के लिए आकर्षित करते हैं। जहां तक यूक्रेन के विदेशी शिक्षा (राज्य स्तरीय) की बात है तो उसे मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन एंड साइंस ऑफ यूक्रेन के अंतर्गत शामिल किया जाता है। इसके माध्यम से यूक्रेन जाने वाले विदेशी छात्रों को इनरोलमेंट प्रदान किया जाता है।

भारतीय छात्रों को सहायता प्रदान करने के लिए यूक्रेन गवर्नमेंट ने नई दिल्ली में एजुकेशन कंसल्टेंसी के तौर पर प्रोएक्टिव ग्रुप की स्थापना की है, जो इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स का ì0;क्रिय सदस्य है तथा इसमें करीब 30 यूनिवर्सिटीज को शामिल किया गया है। इस ग्रुप के पास कई एक्सपर्ट कंसल्टेंट मौजूद हैं, जो एविएशन के साथ-साथ मेडिकल, इंजीनियरिंग, हॉस्पिटेलिटी जैसे कोर्सेज के बारे में भारतीय छात्रों को जानकारी प्रदान करते हैं। यह ग्रुप करियर सेलेक्शन, यूनिवर्सिटी के बारे में जानकारी, आवश्यक डॉक्यूमेंट, लीगल इश्यू, यूरोपियन लाइफ स्टाइल, वीजा एवं ट्रैवल सपोर्ट, यूक्रेन एयरपोर्ट पर रजिस्ट्रेशन, सोशल एवं लीगल सपोर्ट, यूक्रेन में रोजगार तथा पेरेंट्स को यूक्रेन में पढ़ रहे बच्चों के पास भेजने जैसे कार्यों में भरपूर मदद करता है। प्रोएक्टिव ग्रुप के सीईओ यूरी गोरोखोवस्की के अनुसार ‘यूक्रेन सरकार के सहयोग से हम ट्रांसपोर्ट, फीस पॉलिसी जैसी समस्याओं को शीघ्र दूर करते हैं। यूक्रेन की प्रत्येक यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के लिए सीमित सीटें हैं। प्रोएक्टिव ग्रुप यूक्रेन स्टेट सेंटर फॉर इंटरनेशनल एजुकेशन के सहयोग से सही कार्य कर रहा है। जो छात्र हमारे जरिए यूक्रेन जाते हैं, उनके लिए कई संभावनाएं हैं।’

आजकल यूक्रेन में करीब 3000 भारतीय छात्र अध्ययन कर रहे हैं तथा आने वाले दि 44;ों में यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि भारतीय छात्रों की यूक्रेन में अध्ययन के लिए लाइसेंस एवं अन्य कागजात संबंधी दिक्कतों को प्रोएक्टिव ग्रुप द्वारा सहजता से दूर कर दिया जाता है। वहां पर अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों में ज्यादातर संख्या एविएशन फील्ड की है। यूक्रेन में एविएशन की जितनी भी यूनिवर्सिटीज हैं, वे सभी अपनी खोज एवं आविष्कार के लिए जानी जाती हैं। उदाहरण के तौर पर विश्व की पहले सेटेलाइट को 1957 में केआईईवी पॉलिटेक्निक इंस्टीटय़ूट द्वारा डिजाइन एवं पेश किया गया था। सर्जे कोरोल्येव ने पहली स्पेस शिप डिजाइन की तथा स्पेस पर पहली बार किसी व्यक्ति को भेजा। यूक्रेन के ही इंजीनियरों ने विश्व के सबसे बड़े प्लान (एन्टोनोव प्लान) को डिजाइन एवं तैयार किया था। वे यूक्रेन के ही वैज्ञानिक थे, जिन्होंने चंद्रमा पर पहुंचने के लिए ऑप्टिमल ट्रेजेक्टरी की गणना की, जिसे बाद में अमेरिकियों ने ‘अपोलो मून प्रोग्राम’ का नाम दिया था।

एजुकेशन सिस्टम

यूक्रेन बोलोग्ना प्रॉसेज (यूरोपियन हायर एजुकेशन एरिया) का ही एक भाग है, जो कि क्वालिटी एजुकेशन प्रदान करने वाले 46 देशों के समकक्ष खड़ा है। वहां की डिग्री को यूनेस्को सहित सभी यूरोपियन यूनिवर्सिटीज द्वारा मान्यता प्राप्त है। भारतीय छात्रों के लिए इंग्लिश ऐसा सब्जेक्ट है, जिसके जरिए वे लोगों से संपर्क में आ सकते हैं। इसके एविएशन प्रोग्राम विश्व स्तर पर मान्यताप्राप्त हैं तथा उनके आधार पर पायलट, स्पेस इंजीनियरिंग तथा एविएशन आदि क्षेत्रों में जॉब मिल सकती है। ऐसे अधिकांश छात्र हैं, जो यूक्रेन में अध्ययन करने के पश्चात वहीं सेटल हो गए। करीब 50 देशों के छात्र यूक्रेन में एविएशन की पढ़ाई के लिए आ रहे हैं।

एडमिशन प्रोसेस

यूक्रेन में एडमिशन संबंधी प्रक्रिया बहुत ही सरल है तथा इसके लिए किसी एंट्रेस एग्जाम को पास करने की भी आवश्यकता नहीं है। महज इंटरव्यू के आधार पर ही दाखिला मिल जाता है। सैकड़ों छात्रों ने यूरोपियन यूनिवर्सिटी के प्रोग्राम में अपना ट्रांसफर भी करवाया है, क्योंकि वहां पर कनाडा, यूएसए एवं ग्रेट ब्रिटेन से प्रोफेसरों एवं गेस्ट फैकल्टी बुला कर छात्रों को उनकी नॉलेज बढ़ाने का अवसर दिया जाता है। साथ ही स्थानीय स्पेशलिस्ट भी पूरी शिद्दत से इस कार्य में जुटे हैं।

फी स्ट्रक्चर

जहां तक एविएशन से संबंधित कोर्सेज की फीस का सवाल है तो उसकी पढ़ाई 15,000-19,000 रुपए प्रतिमाह फीस देकर शुरू की जा सकती है। इसके अलावा 4,400-17,600 रुपए प्रतिमाह रहने या खाने आदि पर खर्च होते हैं, जो कि किसी भी अन्य देश की अपेक्षा काफी कम; हैं।

एविएशन से संबंधित यूनिवर्सिटी

नेशनल एविएशन यूनिवर्सिटी (केवाईआईवी)
नेशनल एयरोस्पेस यूनिवर्सिटी (केएचएआरकेआईवी)
स्टेट फ्लाइट एकेडमी ऑफ यूक्रेन (किरोवोग्राड)
आईटी एंड इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी
एलवीआईवी पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी
नेशनल माइनिंग यूनिवर्सिटी ऑफ यूक्रेन

संपर्क पता

अपनी जानकारी एवं रजिस्ट्रेशन के लिए छात्र निम्न वेबसाइट का सहारा ले सकते हैं-
www.studyukrain.in
www.proactivegroup.com.ua