ads By ravi

Thursday, June 24, 2010

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट:

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट: प्रबंधन खेल-खेल में



आईपीएल का खुमार अभी उतरा भी नहीं था कि टेलीविजन से लेकर कॉलोनी के पार्क तक फीफा वर्ल्ड कप की धूम मची हुई है। हो भी क्यों न, भारत में खेल देखा नहीं, बल्कि जीया जो जाता है। आज हर तरफ फीफा की धूम मची हुई है। कोई रोनाल्डो बना घूम रहा है तो कोई मैसी। जिसे देखो, अपनी दीवानगी जाहिर करने के लिए नए-नए उपाय करता नजर आ रहा है। आज से दो दशक पहले की बात करें तो क्या क्रिकेट और क्या फुटबाल, दर्शकों की दीवानगी तो खूब दिखी, लेकिन जुनूनी हद तक कभी नजर नहीं आई। माया का बढ़ता प्रभाव कहें या फिर आम और खास आदमी की भारी होती जेब, आज जिस तरह का बदलाव नजर आ रहा है, उसने साबित कर दिया कि मार्केट में खेल भी बिकता है।

क्रिकेट, फुटबॉल तो फिर भी खासे पापुलर खेल हैं, आज तो हॉकी, बैडमिंटन से लेकर बॉक्सिंग तक और टेनिस से लेकर कुश्ती तक हर खेल और उसके खिलाड़ी दर्शकों के पसंदीदा बनते जा रहे हैं। खिलाड़ी जो चला वह अर्श पर और जो असफल रहा वह फर्श पर। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि खेल-खिलाड़ियों की दुनिया में इतनी रंगीनी, लोगों की इतनी दिवानगी अचानक कैसे पैदा हुई तो जवाब मिलता है मार्केटिंग फिट हो तो सब हिट। बस यही बात अहम है, जो आज स्पोर्ट्स चाहे वो क्रिकेट हो या फिर हॉकी या निशानेबाजी, सभी के लिए टीवी से लेकर स्टेडियम तक, क्लब से लेकर कॉलोनी की सड़कों तक दर्शकों का अच्छा-खासा जमावड़ा लगने लगा है। इस दीवानगी से दर्शकों को चाहे जो मिले, आयोजकों को मोटी आमदनी जरूर हो जाती है। खेल के साथ मुनाफे को जोड़ने में उम्दा मैनेजरों की भूमिका किसी से छुपी नहीं है और यही वह कारण है कि आज स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एक पॉपुलर करियर ऑप्शन के तौर पर पहचान बना रहा है।

क्या है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट

मैनेजमेंट से सीधा पर्याय है बेहतर प्रबंधन, फिर वह चाहे स्पोर्ट्स मैनेजमेंट ही क्यों न हो। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का सीधा अर्थ है खिलाड़ियों के खेल से परे एक मैच के आयोजन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज का बेहतर प्रबंधन। चूंकि आज खेल का सीधा सम्बंध मुनाफे से जुड़ गया है, सो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का अर्थ है एक आयोजन का इस तरह से मैनेजमेंट करना, जिससे कि उम्दा आयोजन के साथ-साथ अधिकतम मुनाफा कमाया जा सके। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए सबसे पहली अनिवार्य योग्यता है खेल और उससे जुड़े तमाम पहलुओं से जुड़ा होना। बैचलर डिग्री कोर्स के लिए बारहवीं पास उम्मीदवारों का मैरिट के आधार पर दाखिला होता है, जबकि पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री व डिप्लोमा पाठय़क्रमों के लिए कम से कम 40 फीसदी अंकों से ग्रेजुएट होना जरूरी है। इसी तरह स्पोर्ट्स इकोनॉमिक्स एंड मार्केटिंग सरीखे सर्टिफिकेट कोर्स के लिए आवेदक का बारहवीं पास होना ही पर्याप्त है यानी जैसी योग्यता, वैसे पाठय़क्रम में अध्ययन का अवसर यहां उपलब्ध है।

विस्तृत होता दायरा यानी भरपूर विकास

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का दायरा बेहद विस्तृत है यानी इसमें विकास की भरपूर सम्भावनाएं मौजूद हैं। यह एक ऐसी फील्ड है, जिससे जुड़े प्रोफेशनल खेल को जानते तो हैं, लेकिन खिलाड़ी नहीं हैं। ऐसे लोग खेलते तो नहीं हैं, लेकिन खेल से होने वाले मुनाफे व उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों में इनकी भूमिका अहम होती है। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के तहत आने वाली फील्ड की बात करें तो इसमें ब्रांड-इंडोर्समेंट, स्पोर्ट्स गुड्स प्रमोशन, फैशन-गैजेट प्रमोशन, ग्राउंड अरेंजमेंट, सिलेब्रिटी मैनेजमेंट, स्पोर्ट्स एजेंट और स्पोर्ट्स टूरिज्म जैसी कई स्पेशलाइज्ड फील्ड आती हैं। इन सभी में कहीं न कहीं एक अच्छा मैनेजर ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाने का प्रयास करता है और यही उसकी विशेषज्ञता की असल पहचान होती है। मतलब खिलाड़ी अपना खेल खेलता है, लेकिन उसके माध्यम से होने वाली कमाई का खेल और उसका प्रबंधन स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कहलाता है। खिलाड़ी के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और तो और उसके हैल्थ ड्रिंक के प्रमोशन तक से मुनाफा कमाया जा रहा है।

आज के दौर में उपयोगिता

रोनाल्डो की टी-शर्ट हो या फिर सचिन तेंदुलकर की दस नम्बरी टी-शर्ट, मार्केट में उतरने के बाद भले उसे तैयार करने की लागत 100 रुपये ही क्यों न हो, फैंस उसे 500 व 1000 रुपये में यूं ही खरीद लेते हैं। यही है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का मार्केटिंग फंडा। आज के दौर में कभी खेल के मैदान पर नजर आने वाले स्पोर्ट्स शूज हमारी दैनिक जरूरत का सामान बन चुके हैं। हम और आप बेहद शान के साथ उन जूतों को पहन ऑफिस तक तन कर पहुंच जाते हैं। यही है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का प्रभाव। आज के दौर में इसकी बढ़ी उपयोगिता का अंदाजा लगाने की बात की जाए तो क्रिकेट में सचिन बिकता है तो फुटबॉल में बाईचुंग भूटिया। आज के दौर में कुश्ती के सुशील कुमार की पहचान किसी से छिपी नहीं और न ही बॉक्सिंग प्लेयर विजेन्द्र व अखिल कुमार की। खेल चाहे जो हो, आज मार्केटिंक के बूते आम जनता के बीच सब बिक रहा है। मुनाफे की इस अंधी दौड़ में कमाने वाला जम कर कमा रहा है। दर्शकों का रूझान नई-नई उपलब्धियों को देख कर नए-नए खेलों की ओर बढ़ रहा है।

आईपीएल मैच की बात करें तो यहां तो भारतीय खिलाड़ियों का जमावड़ा नजर आता है, लेकिन फीफा जिसमें भारतीय प्रतिनिधित्व भी नहीं है तो भी भारतीय दर्शकों के बीच यह खेल इस कदर पैठ बना चुका है कि रात 12 बजे लोग मैच देखते हैं और सुबह उठ कर मैदान में फुटबॉल के साथ अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाते हैं।
खेल के प्रति बढ़ी यही दीवानगी है, जिसके लिए आम आदमी की जेब से पैसा निकलते देर नहीं लगती और इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए ही स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एक्सपर्ट जुटे रहते हैं। मैदान के अंदर और बाहर हर जगह, हर तरह से मुनाफा कमाया जा रहा है। पुलेला गोपीचंद को प्रसिद्ध मिली तो अपनी अकेडमी खोल औरों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है। मार्केटिंग अपने आप ही हो गई, जब एक स्टार खिलाड़ी ही अकेडमी खोल सिखाएगा तो भीड़ जुटना तो लाजमी है।

यही वह कारण है कि रोहतक की सायना नेहवाल हैदराबाद तक पहुंच जाती है। आज साइना अपने आप में एक चर्चित नाम है। ऐसा नाम, जिसके आधार पर मार्केट में मुनाफा कमाया जा रहा है।

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